नौलि
योग का एक नियम है कि प्रत्येक मांसपेशी एक दिन में कम से कम एक बार गतिशील अवश्य हो। इससे हमारी ऊर्जा पुन: प्रवाहित होने लगती है और रुकावटें दूर होती हैं। ऊर्जा पानी के समान है। जो पानी एक जगह ठहरा रहता है वह अशुद्ध और दुर्गंधयुक्त हो जाता है। इसके विपरीत, जो पानी बहता रहता है हमेशा शुद्ध रहता है। यही कारण है कि हमें भी अपने पेट की मांसपेशियों और आंतों को रोजाना गतिशील करना चाहिये। नौलि अति प्रभावी रूप से पाचन में सहायक है और इस प्रक्रिया में आने वाली रुकावटों को दूर करती है।
प्रारंभिक व्यायाम
विधि :
पैरों को थोड़ा सा खोलकर खड़े हा जायें। > नाक से गहरा पूरक करें। > घुटनों को थोड़ा मोड़ते हुए दोनों हाथों को जांघों पर रखकर मुख से पूरी तरह रेचक करें। > बाजुओं को सीधा करें। पीठ सीधी है, सिर तना हुआ। पेट की मांसपेशियों को विश्राम दें। > अब बिना श्वास लिए पेट की दीवार (चर्म) को ताकत के साथ और जल्दी-जल्दी 10-15 बार अन्दर-बाहर करें। > नाक से पूरक करें और फिर तनकर सीधे खड़े हो जायें। > इस व्यायाम को 3-5 बार दोहरायें।
लाभ :
अग्निनसार क्रिया मणिपुर चक्र को सक्रिय करती है और जठराग्नि को जागृत करती है। यह चयापचयन को उत्तेजित करती है, रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करती है और मधुमेह में यह लाभकारी है।
सावधानी :
केवल खाली पेट ही इसका अभ्यास करें। इस विधि का अभ्यास गर्भावस्था, मासिकधर्म या पेट की किसी शल्य चिकित्सा के बाद नहीं करें। यदि आंत या अग्नाश्य संबंधी कोई बीमारी है तो इसका अभ्यास करने से पहले चिकित्सक से परामर्श करें।
सावधानी :
खाली पेट ही यह अभ्यास करें। गर्भावस्था की स्थिति में या गुर्दे और पित्ताशय में पथरी हो तो इसका अभ्यास नहीं करें।
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