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Showing posts from February, 2020

रोग उपयोगी आसन

रोग और उनके उपयोगी आसन   ताड़ासन : करियर आदि में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से युवाओं में गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ गया है। याददाश्त कम होती जा रही है। उच्च रक्तचाप की समस्या हो गई है। इस आसन को करने से लाभ मिलता है। बज्रासन : शरीर का मध्य भाग सीधा रहता है। आंखों की रोशनी बढ़ती है। मन की चंचलता दूर होकर व्यक्ति की बुद्धि स्थिर होती है। इसे नियमित करने से लाभ मिलेगा। शरीर मजबूत होगा। रेखागति आसन : इस आसन को करने से एकाग्रता बढ़ती है। रक्तचाप सामान्य रहता है। सभी को इस आसन को करना चाहिए। छात्र-छात्राएं भी इसे कर सकते हैं। अट्टहास : प्रतिदिन दिन में तीन बार 30 सेकेंड तक खुलकर हंसने से तनाव से मुक्ति मिलती है। काया निरोगी रहती है। शिविर में इस क्रिया को करने से आपस में उत्पन्न होने वाली क्रियाओं का असर रहता है। अर्धउष्ट्रासन : लगातार बैठकर काम करते रहने से रीढ़ व कमर दर्द की समस्या होने लगी है। इस आसन के अभ्यास से इससे निजात मिलती है। इसको कार्यालय में भी बैठकर किया जा सकता है। शशांक आसन : इसके नियमित अभ्यास से पीठ दर्द और गर्दन दर्द में राहत मिलती है। दमा, मधुमेह और हृदय रोग स...

मूल बंध

अभ्यास :- गहरा पूरक करें और श्वास रोकें। हाथों को घुटनों पर रखें, कंधों को ऊंचा करें और धड़ को थोड़ा सा आगे झुकायें। मूलाधार चक्र पर ध्यान दें और दृढ़ता से गुदा मांसपेशियों को सिकोड़ें। > मांसपेशियों का सिकुडऩ और श्वास को यथासंभव और सुविधाजनक स्थिति तक रोकें। > लम्बा रेचक करते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें। > सामान्य श्वास के साथ कुछ देर तक इसी स्थिति में बने रहें। लाभ :- गुर्दे की श्रोणी सतह मजबूत करता है। बवासीर दूर करता है और किडनी की श्रोणी क्षेत्र में संक्रमण को कम करता है। यह स्वायत्त नाड़ी तंत्र को शान्त करता है और मन को शांत व तनाव रहित बनाता है। आध्यात्मिक स्तर पर, मूल बंध मूलाधार चक्र को सक्रिय और शुद्ध करता है। यह सुप्त चेतनता और कुंडलिनी शक्ति को जागृत करता है। सावधानी : मूल बंध का दीर्घकालीन और गहन अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" के एक अनुभवी अनुदेशक के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए।

उड्डियान

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                   उड्डियान बंध :- उड्डियान बंध योगासन शरीर को सुड़ौल बनाता है उड्डियान बंध योगासन जीवन शक्ति को बढ़ाकर हमें दीर्घायु बनाता है। शरीर को सुडौल और स्फूर्तिदायक बनाए रखता है। आंतों, पेट के अन्य अंगों को बल देता है। मोटापा नहीं आने देता।  डायबिटीज  में बड़ा लाभकारी है। भूख ना लगना, कब्ज, गैस, एसीडिटी जैसे पेट के रोगों को दूर करने वाला है। बार-बार पेशाब जाना आदि मूत्रदोष में आराम पहुंचाता है। लिवर से निकलने वाले एंजाइम्स को बैलेंस करता है। किडनी को स्वस्थ बनाए रखता है। नाभि स्थित ‘समान’ वायु को बल देता है। साथ ही वात, पित्त कफ की शुद्धि कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है, ऊर्जा को उर्ध्वमुखी करने में सहयोगी है उड्डियान बंध योगासन करने की विधि: आंतों को पीठ की ओर खींचने की क्रिया को उड्डियान बंध योगासन कहते हैं। इसमें सांस बाहर निकालकर पेट को ऊपर की ओर जितना खींचा जा सके उतना खींचकर पीठ के साथ चिपकाया जाता है। किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठकर कमर व गर्दन को सीधा कर दोनों हाथों को दृढ़ता से घुटनों प...

जालंधर बंध

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                           जालंधर बंध :- ऐसा माना जाता है कि इस बंध का अविष्कार जालंधरिपाद नाथ ने किया था इसीलिए उनके नाम पर इसे जालंधर बंध कहते हैं। हठयोग प्रदीपिका और घेरंड संहिता में इस बंध के अनेक लाभ बताएँ गए  है ं। कहते हैं कि यह बंध मौत के जाल को भी काटने की ताकत रखता है, क्योंकि इससे दिमाग, दिल और मेरुदंड की नाड़ियों में निरंतर रक्त संचार सुचारु रूप से संचालित होता रहता है। विधि :  किसी भी सुखासन पर बैठकर पूरक करके कुंभक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबाएँ। इसे जालंधर बंध कहते हैं। अर्थात कंठ को संकोचन करके हृदय में ठोड़ी को दृढ़ करके लगाने का नाम जालंधर बंध है। इसके लाभ :  जालंधर के अभ्यास से प्राण का संचरण ठीक से होता है। इड़ा और पिंगला नाड़ी बंद होकर प्राण-अपान सुषुन्मा में प्रविष्ट होता है। इस कारण मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में सक्रियता बढ़ती है। इससे गर्दन की माँसपेशियों में रक्त का संचार होता है, जिससे उनमें दृढ़ता आती है। कंठ की रुकावट समाप्त होती है। मेरुदंड में ‍ख...

बंध

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                                           बंध का शाब्दिक अर्थ है- 'गाँठ', बंधन या ताला। इसके अभ्यास से प्राणों को शरीर के किसी एक भाग पर बाँधा जाता है। इसके अभ्यास से योगी प्राणों को नियंत्रित कर सफलता पूर्वक कुंडलिनी जाग्रत करता है। बंध और मुद्रा दोनों का अभ्यास साथ-साथ किया जाता है। पाँच प्रमुख बंध इस प्रकार हैं।  1. मूलबंध  2. उड्डीयानबंध  3. जालंधर बंध  4. बंधत्रय और  5. महाबंध। मूलबंध के द्वारा प्राणों का केंद्रीकरण  pelvic plexus  में, उड्डीयान बंध के द्वारा  Epigastric plexus  में और जालंधरबंध के द्वारा  carotid plexus  में होता है। मूलबंध अपान वायु, जो उत्सर्जन की क्रिया संपादित करती है को नियंत्रित करता है। उड्डीयान बंध अवशोषण क्रिया संपादित करने वाली समान वायु को नियंत्रित करता है। जालंधर बंध उदान वायु (जो भोजन निगलने और स्थूल शरीर को सूक्ष्म शरीर से पृथक करने की क्रिया स...

नौलि

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                          योग का एक नियम है कि प्रत्येक मांसपेशी एक दिन में कम से कम एक बार गतिशील अवश्य हो। इससे हमारी ऊर्जा पुन: प्रवाहित होने लगती है और रुकावटें दूर होती हैं। ऊर्जा पानी के समान है। जो पानी एक जगह ठहरा रहता है वह अशुद्ध और दुर्गंधयुक्त हो जाता है। इसके विपरीत, जो पानी बहता रहता है हमेशा शुद्ध रहता है। यही कारण है कि हमें भी अपने पेट की मांसपेशियों और आंतों को रोजाना गतिशील करना चाहिये। नौलि अति प्रभावी रूप से पाचन में सहायक है और इस प्रक्रिया में आने वाली रुकावटों को दूर करती है। प्रारंभिक व्यायाम विधि : पैरों को थोड़ा सा खोलकर खड़े हा जायें। > नाक से गहरा पूरक करें। > घुटनों को थोड़ा मोड़ते हुए दोनों हाथों को जांघों पर रखकर मुख से पूरी तरह रेचक करें। > बाजुओं को सीधा करें। पीठ सीधी है, सिर तना हुआ। पेट की मांसपेशियों को विश्राम दें। > अब बिना श्वास लिए पेट की दीवार (चर्म) को ताकत के साथ और जल्दी-जल्दी 10-15 बार अन्दर-बाहर करें। > नाक से पूरक करें और फिर तनकर सीधे खड़े ह...

कपालभाति

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                               कपालभाति प्राणायाम (Kapalbhati Pranayama)  करने से व्यक्ति के चहेरे पर चमक आती है। और इस प्राणायाम से कई प्रकार के जटिल रोग दूर होते हैं और स्वस्थ व्यक्ति इस अभ्यास को प्रति दिन करता रहे तो वह जीवनभर निरोगी रहता है। कपालभाति, प्राणायाम-योग का एक विशिष्ठ अंग है। ध्यान और मानसिक शक्ति  (Mental Power)  के विकास के लिए कपालभाति को अति महत्वपूर्ण बताया गया है। प्राचीन समय के कुछ ज्ञानी महात्मा और योगी द्वारा कपालभाति को षटकर्म का एक भाग भी कहा गया है। कपालभाति से कुण्डलिनी शक्ति भी जागृत होती है। मन को शांत और प्रफुल्लित रखने के लिए, कपालभाति प्राणायाम प्रतिदिन करना चाहिए। कपालभाति प्राणायाम शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करके उन्हे सम्पूर्ण स्वस्थ बनाकर रोगों को दूर करता है। कपालभाति एक सरल प्राणायाम है। इस प्राणायाम में सांस तेजी से बाहर छोड़नी होती है। ऐसा करने से पेट की वायु नाक के माध्यम से तेजी से बाहर निकलती है। कपालभाति प्राणायाम कैसे करें :- कप...

वस्त्रधौति

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                   वस्त्रधौति क्या है? ‘वस्त्र’ का अर्थ है कपड़ा। पेट एवं भोजन नली को कपड़े से साफ करने की क्रिया वस्त्रधौति है।  वस्त्रधौति एक अत्यंत लाभकारी शोधन योग क्रिया है जो पुरे शरीर को साफ करते हुए शरीर से विषैले पदार्थ को बाहर निकालने में मदद करता है। शरीर से हानिकारक पदार्थ को वस्त्र के मदद से निकाला जाता है। वस्त्रधौति की विधि :- सबसे पहले आप बारीक मुलायम सूती कपड़े का तीन से छह इंच तक चौड़ा और आठ गज लंबा टुकड़ा लें। कपड़े को पानी और साबुन से अच्छी तरह से धो लें। उसके बाद इसे पांच मिनट तक पानी में उबालें। कागासन में बैठें। मुंह को पूरा खोलकर कपड़े का एक सिरा गले के भीतर ले जाएं, दूसरा सिरा जीभ पर फैलाएं और अंगुलियों को इस तरह बाहर लाएं कि कपड़ा उसी तरह रहे। जीभ हिलाकर कपड़े को धीरे-धीरे निगलना आरंभ करें। यदि कपड़ा गले में फंस जाता है और नीचे नहीं जाता है तो एक घूंट गर्म पानी पी लें किंतु अधिक पानी नहीं पिएं क्योंकि पेट में कपड़ा भरना है, पानी नहीं। कपड़ा निगलते रहें और वमन नहीं होने दें। जब दो-तिहाई कपड़ा नि...

जल नेति

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                         जल नेति नमकीन पानी के साथ नेति तकनीक : विशेष रूप से बने हुए बर्तन, नेति-पात्र, को गरम नमकीन पानी से भर लें। पानी का तापमान 38-40 सेन्टीग्रेड हो व उसमें 1 लीटर पानी में लगभग 1 चाय का छोटा चम्मच नमक मिला हो।* सिर को धोने के पात्र (जैसे टब) के ऊपर झुकाएं और आहिस्ता से नेति-पात्र की नली को दायें नथुने में डाल दें (जिसके फलस्वरूप नथुना बंद हो जाता है।) सिर को थोड़ा आगे मोड़ें और इसी समय सिर को बायीं ओर झुकाएं जिससे पानी बायें नथुने से बाहर निकल जाये। खुले मुख से श्वास लेते रहें। दायें नथुने से नेति-पात्र में भरा लगभग आधा पानी बहा दें। अब आहिस्ता से नेति-पात्र की नली को बायें नथुने में डालें और सिर को दायीं ओर झुकाएं, जिससे पानी दायें नथुने से बाहर निकल जाये। जब यह क्रिया समाप्त हो जाए तब कपाल-भाति-प्राणायाम तकनीक से दोनों नथुनों से अवशिष्ट पानी बाहर निकाल दें। नाक के शुद्धिकरण को पूर्ण करने के लिए, एक नथुने को बंद करके दूसरे नथुने से 3-5 बार प्रत्येक नथुने से जोर से श्वास बाहर न...

क्रिया का मतलब

क्रिया का मतलब : क्रिया योग की यह विशेषता है कि इसमें ध्यान के लिए मन को नियन्त्रित करने की आवश्यकता नहीं रहती है। इसमें सर्व प्रथम आँखें खुली रखते हुए मन को मनमानी करने की छूट दी जाती है। मन की गति को सिर्फ साक्षी भाव से देखा जाता है। अन्ततः मन धीरे-धीरे स्वयं शान्त होने लगता है। जैसे ही मन शान्त हो जाता है, वैसे ही साधक ध्यान की स्थिति में पहुँच जाता है। मगर इस  क्रिया योग (Kriya Yoga)  की साधना में अन्य कई प्रकार के अभ्यास भी जोड़ दिये गये हैं। इसमें  आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बन्ध  तथा  हठयोग  कई कठिन क्रियाएं भी शामिल हैं। कुल मिलाकर  क्रिया योग (Kriya Yoga)  की तैयारी काफी कठिन है- भले ही इसकी साधना को सरल रूप में चित्रित किया जाय। इस साधन में यह भी माना जाता है कि इस  क्रिया योग (Kriya Yoga)   के अभ्यास से मूलाधार में प्रसुप्त कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है और इसके दिव्य अनुभव साधक को प्राप्त होते हैं। यह भी माना जाता है कि  इस ‘क्रियायोग’ से हर प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोग भी ठीक हो जाते हैं योग मे...

नियम

अष्टांग योग का दूसरा चरण  : नियम  महर्षि पतंजलि के योग सूत्र का दूसरा चरण नियम है | पहला चरण यम जहा मन को शांति देता है , वही दूसरा चरण नियम हमें पवित्र बताता है |   नियम के भी पांच प्रकार होते हैं : शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)। आसन से तात्पर्य है स्थिर और सुख देनेवाले बैठने के प्रकार (स्थिर सुखमासनम्‌) जो देहस्थिरता की साधना है।  नियम : जीवन में पवित्रता  योग दर्शन में शौच,संतोष,तप,स्वाध्याय,व ईश्वर प्रणिधान को नियम कहते है. यह पांच नैतिक नियम है, जो हमारे अंदर की कलुस्ता (गंदगी) को दूर करते हैं, और हमें योग मार्गी जीवन जीने के लिए एक स्वच्छ और बेहतर शरीर प्राप्त करने में मददगार साबित होते हैं क्योंकि जब तक हम शारीरिक रूप से स्वस्थ और स्वच्छ नहीं रहेंगे तब तक हम योग मार्ग पर सफलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं . नियम पांच प्रकार के होते है - शौच :- शौच का अर्थ पवित्रता या सुचिता है.पवित्रता दो तरह की होती है – बाह्य व आभ्यंतर . मिट्टी या जल स...

यम

अष्टांग योग का परिचय अष्टांग योग महर्षि पतंजलि के अनुसार “योगश्चितवृत्तिनिरोध:” चित्तवृत्ति के निरोध का नाम योग है | इसकी स्थिति और सिद्धि के निमित्त कतिपय उपाय आवश्यक होते हैं जिन्हें ‘अंग’ कहते हैं और जो संख्या में आठ माने जाते हैं। अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) ‘बहिरंग’ और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) ‘अंतरंग’ नाम से प्रसिद्ध हैं। यम का अर्थ है संयम जो पांच प्रकार का माना जाता है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना ),। आसन जप होने पर श्वास प्रश्वास की गति के विच्छेद का नाम प्राणायाम है। बाहरी वायु का लेना श्वास और भीतरी वायु का बाहर निकालना प्रश्वास कहलाता है। प्राणायाम प्राणस्थैर्य की साधना है। इसके अभ्यास से प्राण में स्थिरता आती है और साधक अपने मन की स्थिरता के लिए अग्रसर होता है। अंतिम तीनों अंग मन:स्थैर्य का साधना है।  यम का मतलब शान्ति :- योगदर्शन में अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रम्हचर्य व अपरिग्रह को यम कहा गया है. इन्हें पमुखता से पांच सामाजिक नैतिकता नियम कह सकते है , अच्छे और शांत माहोल के लिए एक...

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What Is The Full Form Of PCS ? PCS: Provincial Civil Service Provincial Civil Service  (PCS) is a state level civil service job. Employees of  PCS  are worked under State Government. More Full Form of PCS Price Scale     >>      Accounting Plane Crash Survivor     >>      Aircraft & Aviation Picos, PI, Brazil     >>      Airport Codes Planning  Connect System     >>      Architecture Portable Character Set     >>      Assembly Pointing Control System     >>      Astronomy Port Congestion Surcharge     >>      Business Poor Cellular Service     >>      Chat Pr...

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